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बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2634
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान

3

पाचन तन्त्र

(Digestive System)

 

प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।

अथवा
भोजन के पाचन से आप क्या समझते हैं? पाचन क्रिया को चित्र के माध्यम से विस्तारपूर्वक समझाइए।

अथवा
पाचन से आप क्या समझते हैं? चित्र के माध्यम से पाचन क्रिया को विस्तारपूर्वक समझाइए।
अथवा
पाचन से आप क्या समझते हैं? पाचन सम्बन्धी विभिन्न अंगों का सचित्र वर्णन करते पाचन क्रिया विस्तार से समझाइये।

अथवा
पाचन से आप क्या समझते हैं? पाचन अंगों का वर्णन कीजिये।

लघु प्रश्न
1. अग्न्याशय के कार्य बताइए।
2. भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
3. पाचन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए।
4. लार ग्रन्थियाँ भोजन के पाचन में किस प्रकार सहायक होती है?
5. पाचन संस्थान के मुख्य अंगों के नाम लिखिए।

उत्तर -

पाचन क्रिया
(Digestion)

जीव शरीर को जीवित दशा में बनाये रखने के लिए इसकी कोशिकाओं में निरन्तर उपापचय होता रहता है। उपापचय में निरन्तर खपने वाले पदार्थ या कच्चे माल (raw material) को जीव अपने बाहरी वातावरण से ग्रहण करता है। इसे जीव का पोषण कहते हैं ऊर्जा उत्पादन तथा वृद्धि एवं मरम्मत के लिए आवश्यक पदार्थ जीवों के पोषक पदार्थ कहलाते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन्स एवं वसाएँ मुख्य अर्थात् दीर्घ पोषक पदार्थ हैं। मानव जो भोजन ग्रहण करता है उनके पोषक पदार्थों के अणु काफी बड़े-बड़े होते हैं। ये अणु शरीर की प्रत्येक कोशिका में हो रही उपापचयी क्रियाओं में सीधे उपयोग में नहीं आ सकते। अतः इस भोजन को शरीर कोशिकाओं के लिए उपयोगी बनाने के लिए इसके बड़े-बड़े अघुलनशील अणुओं को छोटे घुलनशील अणुओं में बदलना अनिवार्य है जिससे ये आँत की दीवार में अवशोषित होकर रुधिर द्वारा शरीर कोशिकाओं में पहुँचाया जा सके तथा उपापचयी क्रियाओं के उपयोग में आ सकें।

अतः वह क्रिया जिसके फलस्वरूप बड़े अणुभार वाले अघुलनशील भोज्य पदार्थ छोटे अणुभार वाले घुलनशील भोज्य पदार्थों में बदल जाते हैं या आहारनाल में भोजन को शरीर में खपने योग्य दशा में बदलने की क्रिया को पाचन कहते हैं। इसमें कुछ भौतिक और कुछ रासायनिक प्रक्रियाएँ होती हैं। पाचन क्रिया शरीर के पाचन तंत्र द्वारा सम्पन्न की जाती हैं।

पाचन तन्त्र से तात्पर्य उन सभी अंगों तथा उनकी भौतिक व रासायनिक क्रियाओं से है जिनके द्वारा भोजन को साधारण तथा घुलित अवस्था में परिवर्तित कर अवशोषण योग्य बनाया जाता है। पाचन क्रिया में एक अंश नहीं बल्कि अंगों का समूह कार्य करता है अतः पाचन क्रिया के विभिन्न आँतरिक अंगों की पूरी व्यवस्था को पाचन तंत्र (digestive system) कहते हैं।

पाचन तंत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित अंग आते हैं-

1. मुख (Mouth) 2. भोजन नली (Oesophagus) 3. आमाशय (Stomach) 4. छोटी आँत (Small Intestine) 5. बड़ी आँत (Large Intestine)

इन अंगों के अतिरिक्त कुछ अंग ऐसे भी हैं जो पाचन तन्त्र के बाहर स्थित हैं किन्तु पाचन क्रिया में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। ये अंग निम्नलिखित हैं-

1. यकृत (Liver) 2. पित्ताशय (Gall bladder) 3. क्लोम ग्रन्थि (Pancreas) 4. लार ग्रन्थियाँ (Salivary glands)|

1. मुँह (Mouth) - पाचन तन्त्र मुँह से प्रारम्भ होता है। जैसे ही भोजन मुँह में आता है दाँत उसे काटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त कर देते हैं जिससे भोजन को निगलने और भोजन नली में खिसकने में सुविधा रहती है। मुँह के अन्दर का ऊपरी भाग एक कठोर अस्थि का बना होता है जिसे तालू कहते हैं। मुँह के सम्पूर्ण खोखले भाग को मुखगुहा कहते हैं निचले भाग में जीम होती है जो माँस पेशियों की बनी होती है और भोजन के इधर उधर पलटने का कार्य करती है।

जीभ (Tongue) - जीभ भी मुँह का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह मोटी माँसपेशियों की बनी होती है। इसका मुख्य कार्य भोजन को दाएं बाएं और ऊपर नीचे खिसकाना है। जीभ में ही स्वादांकुर पाए जाते हैं अतः जीभ के द्वारा ही खट्टा मीठा, कड़वा, कसैला आदि स्वादों का ज्ञान होता है। स्वाद का ज्ञान होने पर लार रस शीघ्रता से स्रावित होता है।

दाँत (Teeth) - दाँत भोजन को काटने व पीसने का कार्य करते हैं जिससे भोजन महीन सूक्ष्मतम कणों में विभक्त हो जाता है और पाचन क्रिया आसान हो जाती है। मनुष्य के जीवन में दाँत दो बार निकलते हैं।

लार ग्रन्थियाँ (Salivary Glands) - मुख की श्लेष्मिक कला में अनेक ग्रन्थियाँ होती हैं, जो अपना स्राव मुँह में पहुँचाती हैं। यह स्राव लार ग्रन्थियों द्वारा निकलता है जिनकी संख्या तीन जोड़ी होती है। एक ग्रन्थि कपोलों में ठीक कान के सामने स्थित होती है। इसे कर्णाग्रवर्ती ग्रन्थि कहते हैं। दूसरी ग्रन्थि जिहवा के नीचे स्थित होती है, जिसे जिवाधोवर्ती ग्रन्थि कहते हैं तथा तीसरी निचले जबड़े के नीचे होती है, इसे अधोहनु लार ग्रन्थि कहते हैं।

लार ग्रंथियों के कार्य इन ग्रन्थियों में एक प्रकार का रस बनता है जो लार के नाम से पुकारा जाता है। यह रस सूक्ष्म नलिकाओं द्वारा मुँह की श्लेष्मिक कला से होकर मुख गुहा में पहुँचाता है। भोजन को पचाने की क्रिया मुख से ही प्रारम्भ हो जाती है जब हम भोजन मुँह में रखते हैं तो लार में उपस्थित पदार्थ म्यूसिन इसे गीला व चिकना बना देता है तथा दाँत इसे चबाना आरम्भ कर देते हैं। लार रस एक पारदर्शी, क्षारीय गाढ़ा एवं चिपचिपा तरल है। इसके मिश्रण से दाँतों को भोजन को महीन पीसने में सहायता मिलती है तथा यह स्निग्ध हो जाने के कारण आसानी से निगला जा सकता है। इसके अलावा लार में एक पाचक विकर टायलिन भी पाया जाता है। भोजन में उपस्थित शर्करा पर रासायनिक क्रिया करके उन्हें सरल रूप माल्टोज व डेक्सट्रीन में बदलता रहता है। जिससे आगे मिश्रित होने वाले पाचक रसों की क्रिया से ये सुगमता से ग्लूकोस में परिवर्तित किया जा सके तथा शरीर में अवशोषण योग्य बनाया जा सके। भोजन को मुँह में जितनी अधिक देर तक चबाया जायेगा, उतनी ही लार उसमें अधिक मिश्रित होगी, जो भोजन के पाचन में सहायक सिद्ध होगी।

2. भोजन नली (Oesophagus or Pharynx)- मुँह के ठीक पीछे 'ग्रसनी' होती है जो कीप के आकार की होती है। यह भोजन नली का ही ऊपरी और प्रारम्भिक भाग है। मुँह से भोजन सर्वप्रथम इस ग्रसनी में ही आता है और फिर बाद में भोजन नली में पहुँचता है। ग्रसनी में ही श्वासनली का ऊपरी भाग खुलता है। भोजन श्वांसनली में न जाए इसके लिए प्राकृतिक प्रबन्ध है। श्वांसनली पर एक ढक्कन लगा होता है जिसे एपिग्लाटिस कहते हैं। जब भोजन निगला जाता है तो श्वांसनली को बन्द कर देता है फिर भी यदि असावधानी से भोजन या पानी श्वांसनली में चला जाता है तो शीघ्र ही श्वांस नली के रोम इन्हें बाहर धकेल देते हैं जिससे खाँसी के साथ पानी या भोजन के कण बाहर आ जाते हैं।

ग्रासनली लगभग 40 से०मी० लम्बी होती है जो नीचे की ओर जाकर फैल जाती है और आमाशय का रूप धारण कर लेती है। यह घुमावदार माँसपेशियों की बनी होती है जिनके संकुचन व विमोचन से भोजन गले से धीरे-धीरे नीचे उतरता है। ग्रासनली में किसी प्रकार के पाचक रस स्रावित नहीं होते हैं इसलिए ग्रासनली में पाचन क्रिया नहीं होती है। यह तो भोजन को आमाशय तक पहुँचाने का कार्य करती है।

3. आमाशय (Stomach) ग्रासनली महाप्राचीरा पेशी ( diaphram) के माध्यम से होती हुई आमाशय के रूप में परिवर्तित हो जाती है। अतः आमाशय ग्रासनली का ही फैला हुआ रूप है जो माँसपेशियों का बना मशक के आकार का होता है। यह महाप्राचीरा के ठीक नीचे होता है तथा इसका दाहिना भाग संकरा तथा बायां भाग चौड़ा होता है। यह लगभग 24 से०मी० लम्बा तथा 10 मी० चौडा होता है। इसके अन्दर तीन प्रकार की माँसपेशियां होती हैं। लम्बवत्, वृत्ताकार और तिरछी। भोजन जैसे ही ग्रासनली से आमाशय में पहुँचता है तो वह आमाशय की वृत्ताकार माँसपेशियों के साथ पर्त के रूप में जमा हो जाता है। लम्बवत और तिरछी माँसपेशियों के संकुचन और विमोचन से भोजन और अधिक महीन कणों में विभक्त हो जाता है।

आमाशय के भीतरी भाग में एक श्लैष्मिक झिल्ली होती है जिसमें असंख्य छोटी-छोटी ग्रन्थियाँ होती हैं जिन्हें 'जठर ग्रन्थियाँ कहते हैं। इन ग्रन्थियों से एक रस स्रावित होता है जिसे आमाशयिक रस या जठर रस कहते हैं। यह रस अम्लीय होता है तथा इसमें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा दो प्रकार के एन्जाइम टेनिन और पेप्सिन होते हैं। ये प्रोटीन का पाचन करते हैं।

आमाशयिक रस द्वारा आमाशय में पाचन क्रिया भोजन के आमाशय में पहुँचने के आधे घण्टे बाद तक आमाशयिक रस स्रावित नहीं होता केवल आमाशय की माँसपेशियों के संकुचन और विमोचन के कारण महीन कणों में विभक्त होता है। आधे घण्टे के दौरान भोजन के साथ आमाशय में आया हुआ लार रस स्टार्च पर अपनी क्रिया करता है। लेकिन जैसे ही आमाशयिक रस आमाशय में आने लगता है लार रस जोकि अम्लीय है आमाशयिक रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा रेनिन और पेप्सिन एन्जाइम पाए जाते हैं जो प्रोटीन का पाचन करते हैं। ये एन्जाइम अम्लीय माध्यम से कार्य करते हैं अतः हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन को अम्लीय बना देता है।

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4. छोटी आँत (Small Intestine) - यह आमाशय के निचले भाग से प्रारम्भ होकर नीचे बड़ी आँत में मिल जाती है। यह लगभग 6 मी0 लम्बी होती है तथा बड़ी आँत के घेरे में कुण्डली के रन्ध्र में स्थित रहती है। इसका ऊपरी भाग 25 से०मी० वाला भाग ही है जो "C" के आकार का होता है पक्वाशय कहलाता है। पक्वाशय के बाद ये और संकरी हो जाती है जो छोटी आँत कहलाती है।

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आमाशय के समान छोटी आँत भी चार स्तरों की बनी होती है। ऊपरी दो पर्तों में अनैच्छिक माँसपेशियां होती हैं। ये माँसपेशियाँ लम्बवत् और अनुप्रस्थ होती हैं। इन पेशियों के संकुचन और विमोचन से ही भोजन आगे बढ़ता है। आन्तरिक पर्त में रक्त कोशिकाएं तथा असंख्य शोषणांकुर (villi) होते हैं जो पचे हुए भोजन को अवशोषित करने का कार्य करते हैं।

छोटी आँत में भोजन का पाचन

भोजन का पूर्ण पाचन छोटी आँत में होता है और यहीं से शोषण क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। छोटी आँत में भोजन 'काइम के रूप में आता है। इस समय प्रोटीन पेप्टोन के रूप में, कार्बोहाइड्रेट डेक्सट्रिन तथा माल्टोज के रूप में तथा कुछ वसा भी वसा अम्ल और ग्लिसरॉल के रूप में होती है।

5. बड़ी आँत (Large Intestine) - छोटी आँत के अन्तिम भाग से ही बड़ी आँत प्रारम्भ हो जाती है। यह छोटी आँत की तुलना में अधिक चौड़ी होती है। छोटी आँत के बाद जहाँ से यह प्रारम्भ होती है उसके नीचे एक बन्द थैली होती है जिसे अद्यांत्र (सीकम) कहते हैं। इस अद्यत्र से जुड़ी हुई एक पूँछ के समान संरचना होती है जिसे 'एपेन्डिक्स' कहते हैं। यह 1 से 15 से०मी० लम्बा बन्द थैली के आकार का होता है। शरीर में इसका कोई कार्य नहीं है।

बड़ी आँत के दो भाग हैं कोलन और मलाशय, जिसमें कोलन लगभग 1.5 मी० लम्बा और 6 सेमी० चौड़ा होता है। कोलन का नीचे से ऊपर यकृत की ओर बढ़ता हुआ भाग 'आरोही कोलन' कहलाता है। फिर ये भाग बायीं ओर मुड़कर उदर गुहा को पार करता हुआ यकृत से झिल्ली तक जाता है। यह सीधा भाग 'अनुप्रस्थ कोलन' कहलाता है। आरोही कोलन का निचला भाग श्रोणी कोलन' कहलाता है। इसके आगे आँत साधारण नलिका के रूप में होती है जिसे 'मलाशय' (rectum) कहते हैं। मलाशय का अन्तिम सिरा मलहार' या गुदा (anus or anul sphincter) कहलाता है। मलाशय में अपचित भोजन का संग्रह होता है जो गुदा द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।

पाचन क्रिया में सहायक अंग

यकृत और पित्ताशय (Liver and Gall bladder) शरीर में यकृत सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण ग्रन्थि है जो दाहिनी ओर निचली पसलियों के पीछे और महाप्राचीरा पेशी से ठीक नीचे स्थित है। भार में लगभग 1.5 kg की होती है। बाह्य रूप में देखने से यह दो भागों में विभक्त दिखाई देती है।

दायां भाग बाएं भाग की अपेक्षा कुछ बड़ा होता है। नीचे की ओर एक नाशपाती के आकार की थैली होती है जिसे 'पित्ताशय' कहते हैं। पित्ताशय के नीचे नलिका होती है जिसका एक ओर सम्बन्ध यकृत से व दूसरी ओर पक्वाशय से होता है। यकृत में लगभग 500 से 700 ग्राम पित्तरस प्रतिदिन बनता है।

यकृत में दो रक्त नलिकाएं रक्त पहुँचाने का कार्य करती हैं एक नलिका यकृत धमनी (शुद्ध रक्त) कहलाती है जिसके रक्त से यकृत का पोषण होता है। दूसरी प्रतिहारिणी शिरा कहलाती है जो आमाशय, आँत, क्लोम ग्रन्थि और प्लीहा से अशुद्ध रक्त एकत्र करके यकृत में लाती है फिर यकृत में अशुद्ध रक्त महाशिरा में डाल दिया जाता है।

प्लीहा (Spleen) - लम्बे आकार की बैंगनी रंग की छोटी सी ग्रन्थि है जो पेंट में बायीं ओर स्थित होती है। इसकी लम्बाई लगभग 12 से०मी० होती है। ये अत्यन्त कोमल होती है। इसका सम्बन्ध आँत व गुर्दों से होता है।

अग्न्याशय (Pancreas) - इसे अग्न्याशय भी कहते हैं। पाचन क्रिया में यह महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यह पक्वाशय के घुमाव में पेट में बायीं ओर स्थित रहती है। यह लगभग 17 से०मी० लम्बी होती है और इसका विस्तार पक्वाशय से प्लीहा तक होता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
  4. प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
  6. प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
  7. प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  8. प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
  9. प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  12. प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
  14. प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
  16. प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
  18. प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
  19. प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
  20. प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
  21. प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
  22. प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
  23. प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
  25. प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
  26. प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
  27. प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
  29. प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
  30. प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
  31. प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
  35. प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
  36. प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
  37. प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
  38. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
  39. प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  40. प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
  43. प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
  44. प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
  45. प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
  46. प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
  48. प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
  49. प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
  50. प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
  52. प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
  53. प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
  54. प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
  55. प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
  58. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
  59. प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
  60. प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
  61. प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
  62. प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
  64. प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
  66. प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  67. प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
  68. प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
  69. प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
  70. प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
  71. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
  73. प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
  74. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
  75. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
  76. प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
  77. प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
  78. प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
  79. प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
  80. प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
  81. प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
  83. प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
  84. प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
  85. प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
  86. प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
  87. प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
  88. प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
  89. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  90. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  91. प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  92. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  95. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  96. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  97. प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  98. प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
  99. प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
  100. प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
  101. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
  103. प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
  104. प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  105. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  106. प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
  107. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  108. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
  109. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
  110. प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
  111. प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
  113. प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
  114. प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
  115. प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
  116. प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
  117. प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
  118. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  119. प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
  120. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
  121. प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
  122. प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
  123. प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
  124. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  125. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  126. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
  127. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
  128. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
  129. प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
  130. प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
  131. प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
  132. प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
  134. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  135. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
  136. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
  137. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
  139. प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
  140. प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
  141. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  142. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
  143. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
  144. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?

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